रेल यात्रा पर निबंध – Rail Yatra Essay in Hindi

आज के इस हिंदी निबंध के आर्टिकल में आप रेल यात्रा पर निबंध (Rail Yatra Par Nibandh in Hindi) पढ़ सकते हैं।

इस निबंध के पहले हमने परिश्रम के महत्व पर निबंध हिंदी में पढ़ा था। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा तो इसे भी जरूर पढ़े।

अब हम आज का यह निबंध रेल यात्रा पर निबंध को शुरू करते हैं आप स्क्रॉल डाउन करके पूरा पढ़िए।

मेरी रेल यात्रा पर निबंध – Rail Yatra Par Nibandh in Hindi

मेरी पहली रेल यात्रा पर निबंध

दोपहर का समय था। दिन के करीब बारह बज रहे थे। आकाश बादलों से घिरा था । हवा बेरोक-टोक चल रही थी।

बादल और बयार में द्वन्द्व छिड़ा हुआ था। आज सुबह से ही रिमझिम वर्षा शुरू हो गई थी। बड़ा ही सुहावना मौसम था। मन चाह रहा था कि कहीं घूम आऊँ ।

अभी गर्मी की छुट्टियाँ समाप्त नहीं हुई थी। लगभग पन्द्रह दिन शेष थे। सोचा, पटना की ही सैर कर आऊँ आज 15 जून रविवार का दिन है।

12 बजे रात्रि एक द्रुतगामी (एक्सप्रेस) गाड़ी थाना बिहपुर में पकड़नी है। यह गाड़ी कटिहार से सीधे दानापुर तक जाती है।

यह एक द्रुतगामी गाड़ी है। रात्रि के कारण रिक्शा चालक 20 रुपये माँग रहा था। किसी तरह मैं थाना बिहपुर जंक्शन पहुँच गया। गाड़ी आने में अभी देर थी।

प्रतीक्षालय में बैठकर बिजली की लुक-छिप देखने लगा। बिहार में बिजली विभाग की हालत भी दर्दनाक है। बिजली जलती कम है और बुझी हुई ज्यादा देर तक रहती है।

गाड़ी आने की घंटी हो गई। टिकट खिड़की के पास पहुँचकर टिकट कटाने की धुन में चक्कर काटने लगा। खिड़की पर ठसाठस भीड़ थी ।

घंटे भर पंक्ति में खड़े होकर तपस्या करनी पड़ी। तब कहीं जाकर टिकट प्राप्त हो सका। गाड़ी आकर प्लेटफॉर्म पर खड़ी हो गई। गाड़ी के आते ही स्टेशन अहाते में हड़कम्प का नजारा देखते बनता है। किसी तरह गाड़ी पर सवार हो पाया।

अन्दर एक सज्जन की कृपा से बैठने भर की जगह मिल गई। डब्बे में गद्देदार सीटें जरूर थीं, पर रोशनी गायब थी।

हाथ-को हाथ नहीं सूझ रहा था कि हल्ला हुआ-चोर ! चोर !! चोर तो भाग ही गया, पर एक यात्री की कलाई घड़ी अपने साथ ले गया।

हर यात्री अपने-अपने ढंग से अपना-अपना विचार व्यक्त करने लगे। हर व्यक्ति उस यात्री को यात्रा के सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव और निर्देश दे रहे थे।

गाड़ी अब मानसी स्टेशन पर आकर रुक गई। अफरात रोशनी और पान चाय वालों का शोरगुल प्रारम्भ हो गया। बेचने वाले के खोमचों को देखता था कि उनका कोई भी सामान ताजा और खाने लायक नहीं था और वे मुँह माँगा मूल्य माँग रहे थे।

इधर भूख और उधर खटमल की तैयारी। दोनों भूखें एक-दूसरे पर झपटने को तत्पर, पंखे चल नहीं रहे थे। दम घुट रहा था ।

अत्यधिक भीड़ के कारण गर्मी और उमस अपनी चरम सीमा पर थी। सोचा, बरौनी तक भीड़ छँट जाएगी, पर बरौनी में तो भीड़ और भी बढ़ गई। यात्रा करने का सारा मजा किरकिरा हो चुका था। अब किसी तरह जान बचाकर डब्बे से बाहर निकल जाना चाहता था।

मोकामा जाते-जाते चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई पड़ने लगी। मुर्गे की बाँग और मुल्ले की अजान भी जहाँ-तहाँ सुनाई पड़ रही थी। पटना सिटी पहुँचा। चाय अच्छी मिली।

पत्रिकाओं को उलटता, इधर-उधर की बातचीत करता पटना जंक्शन पहुँच गया। चढ़ने के समय जो भीड़ थी, उससे भी ज्यादा भीड़ उतरने के समय मिली।

किसी तरह खींच-खाँच कर बाहर निकल पाया। सामने पटना जंक्शन का विशाल भवन था। चारों ओर गन्दगी और कूड़े-करकट का ढेर लगा था। मैं स्टेशन की इस हालत को देखकर आश्चर्यचकित रह गया ।

Final Thoughts –

दोस्तों, आपने इस आर्टिकल में रेल यात्रा पर निबंध हिंदी (Rail Yatra Par Nibandh in Hindi) में पढ़ा।

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