अधजल गगरी छलकत जाय मुहावरे का अर्थ

Adhjal Gagri Chalkat Jaye Ka Arth –

जिसका ज्ञान अधूरा हो वही पूर्ण ज्ञानी होने का दंभ करता है। अर्थात् जो अल्पज्ञ है वही पूर्णज्ञ होने का दावा करता है।

जल से भरा घड़ा छलकता नहीं। उसमें गांभीर्य होता है। आधा भरा घड़ा ही छलकता है। जिसमें पूर्णत्व है, वह अपनी पूर्णता का ढोल नहीं पीटता, लोग स्वयं ही उसके पूर्णत्व का लोहा मानने लगते हैं। ‘अधजल गगरी छलकत जाय

इस कहावत के समकक्ष प्रायः यह कहावत भी है ‘थोथा चना बाजे घना’। अल्पज्ञ कभी नहीं हो सकता है। इसमें दोष उसका नहीं है, दोष उसकी अल्पज्ञता का है।

ज्ञान का भंडार बहुत विशाल है। उस विशाल भंडार में प्रवेश करनेवाला सर्वप्रथम विनयरूपी गुण प्राप्त करता है और स्वभावतः गंभीर बन जाता है।

शेक्सपीयर जैसे महान विद्वान को भी यह कहना पड़ा था, “ज्ञान के विशाल सागर के किनारे बैठकर मैं कंकड़ ही चुनता रह गया, उसमें गोते नहीं लगा सका।”

सच ही, विद्वान अपनी विद्वता का प्रदर्शन नहीं करता। उसका प्रदर्शन वही करता है, जो क्षुद्रबुद्धि है, ज्ञान-भंडार के द्वार से लौटा हुआ है।

विशाल सागर में बाढ़ कभी नहीं आती। थोड़े जल की वृद्धि से इतराती है छोटी-छोटी उथली नदियाँ। इसीलिए कहा गया है कि ‘अधजल गगरी छलकत जाय’।

Final Thoughts –

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